Sunday, July 19, 2009

रोमिंग का मचमच...


बड़ा लम्बा वक्त गुजर गया है, कुछ लिख नहीं पाया... दरअसल मुंबई में था नहीं और ऐसी जगह गया था जहां मेरे साथ मेरी विद्युतीय कलम यानी मेरा कम्प्यूटर नहीं था... अपने पैतृक गाँव गया था इसलिए मुंबई की भाग दौड़ से दूर जाकर काफी अच्छा भी लगा...

खैर, गाँव से लौट रहा था, तब एक मजेदार किस्सा हुआ जिसे याद कर आज भी अकेले में हंसी आ जाती है, मुंबई आने के लिए पहले मुझे जयपुर पहुंचना था, सो जयपुर आने के लिए रेवाडी से ट्रेन पकड़ी...रेवाडी... हरियाणा का एक जिला॥ जो जयपुर से २०० किलो मीटर और दिल्ली से ७० किलो मीटर दूर है... खैर ट्रेन आधा घंटा देरी से थी और जब ट्रेन आई तब मैं अपनी सीट S/६ पर जाकर बैठा...लम्बी छुट्टी के बाद मुंबई जा रहा था इसलिए मूड फ्रेश था, लेकिन गाँव में रहने के बाद मुंबई जाने का दिल नहीं कर रहा था...ट्रेन को रेवाडी से चले हुए आधा घंटा बीत गया था और मैं यही सब सोच रहा था की अचानक मोबाइल की घंटी बजी... ये घंटी मेरे मोबाइल की नहीं थी बल्कि मेरे सामने वाली सीट पर बैठी महिला के मोबाइल की थी...

महिला ने फोन उठाया और बिना दुआ सलाम किए ही सीधा बोलना शुरू कर दिया... " क्या यार तुम समझते नहीं हो मैं रोमिंग में हूँ, मैं अजमेर पहुँचकर बात करुँगी... अभी दिल्ली से चली तब २० रूपये का रिचार्ज करवाया था और दो बार बात करते ही १० रुपया बैलेंस हो गया है... अभी अजमेर जा रही हूँ ॥ तब वहां पहुँचकर मैं तुमको फोन करूंगी... दरगाह पर जा रही हूँ तुम्हारे लिए भी दुआ मांग लुंगी..." और फोन कट गया... फोन काटने के बाद भी उस महिला का बोलना बंद नहीं हुआ... वो लगातार बोलती ही चली जा रही थी... दरअसल वो रोमिंग का अपना दर्द किसी से बाँटना चाह रही थी, लेकिन अंजान होने की वजह से मैं उस महिला का दर्द नहीं बाँट पाया... खैर उस महिला के दर्द को सुननेवाला एक शख्स मिल ही गया... वो फिर शुरू हो गयी... "पता है जब से मैंने मोबाईल लिया है और पहचानने वालो को पता चला है सभी नंबर मांगते है और फोन करते है... पता है मैंने मोबाइल कैसे लिया...कुछ दिन पहले मेरा जन्मदिन था उस वक्त मेरे पापा ने एक हज़ार रुपए दिए थे... बाकी दोस्तों ने भी तोहफे के रूप में पैसे ही दे दिए थे... ऐसे करके तीन हज़ार रुपए हो गए थे, लेकिन मोबाइल खरीदने के लिए मुझे एक हज़ार और चाहिए थे... यहाँ वहां से उस एक हज़ार का भी जुगाड़ हो गया और मैंने मोबाईल खरीद लिया... महिला लगातार बिना रुके बोलते ही जा रही थी कि अचानक एक आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा... आवाज़ चना मसाला बेचने वाले की थी जो चना मसाला खाने के फायदे बता बताकर बेचने की कोशिश कर रहा था... कुछ देर शांति रहने के बाद मोबाईल की घंटी फिर से बजी... इस बार भी घंटी उसी महिला के फोन की बजी थी... महिला ने फिर से फोन उठाया और फिर से उसने अपने रोमिंग में होने के दर्द का बखान करना शुरू कर दिया था... इतने में ट्रेन रुक गयी... बाहर देखा तो अलवर आ चूका था... याद आया कि अलवर कि मिठाई कलाकंद ऑफिस के साथियों और सीनियर्स के लिए लेनी थी, सो उतर कर आधा किलो कलाकंद ले आया...... ट्रेन अलवर से चल चुकी थी महिला भी अपने रोमिंग में होने के दर्द सुनाने के बाद ऊपर वाली सीट पर जाकर सो गयी थी...

कुछ देर तक बाहर भागते हुए पेड़ पोधो को देखते रहा और ना जाने कब अचानक आँख लग गयी... आंख तब खुली जब महिला की फिर से आवाज़ सुनी... इस बार महिला फोन पर बात नहीं कर रही थी, वो तो दरअसल रोमिंग में लगने वाले चार्ज के बारे में अपने बगल वाली सीट पर बैठे शख्स को बता रही थी... वो सर्विस ओपरेटरस को जी भर को कोस रही थी, कि अचानक एक महाशय ने महिला को सुझाव दे दिया कि रोमिंग में हमें इन्कोमिंग कॉल नहीं उठानी चाहिए सिर्फ आउट गोइंग कॉल करनी चाहिए... ये आवाज़ साइड वाली अपर सीट पर बैठे उस पुरुष की थी जो अब तक उस महिला की सारी बातें ध्यान से सुन रहा था... उन महाशय के इस सुझाव को सुनकर लगा कि वो भी रोमिंग के इस दर्द की पीडा को झेल चुके है...

मैं भी सोच में पड़ गया कि क्या रोमिंग का दर्द इतना ज्यादा होता है कि सहन ना हो और जब सहन ना जो तब अनायास ही गुबार फुट पड़ता है... यही सोच रहा था कि ट्रेन जयपुर जंक्शन पहुँच गयी थी... उतरने के लिए सामान उठा ही रहा था कि अचानक मोबाईल की घंटी बजी इस बार ये घटी मेरे मोबाईल की थी... जेब से निकाल कर देखा तो कॉल रिसीव करने से पहले सोचने लगा कि मैं भी तो रोमिंग में हूँ...


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