Monday, July 20, 2009

लो मान गया कसाब... अब सुनाओ सज़ा



मुंबई पर हुए २६/११ के आतंकी हमले के एकमात्र ज़िंदा पकडे गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने आज आखिरकार जुर्म कबूल कर लिया... कसाब ने स्पेशल कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान आज अचानक २६/११ के दिन मुंबई पर किये गए हमले का गुनाह कबूल कर लिया... कसाब की इस कबूली से कोर्ट में मौजूद हर शख्स चौंक गया... अभी तक कसाब अपने आप पर लगाए गए हर आरोप को ग़लत बता रहा था, लेकिन अब कसाब ने स्पेशल कोर्ट के सामने ना सिर्फ अपना गुनाह कबूल किया बल्कि मुंबई पर हमला करने के लिए उसे तैयार करनेवाले ज़किर - उर - रहमान लखवी उर्फ़ चाचा जान की भूमिका से भी पर्दा उठा दिया...


कसाब के इस कबूलनामे में उसने २६/११ की सुनवाई रोककर उसे सजा सुनाने की बात कही॥लेकिन क्या हमारा कानून इस बात को मानेगा... ये सवाल है..??? अभी तक पुलिस और सरकारी वकील इस जुगत में जुटे हुए थे कि कसाब और उसके साथियो के द्वारा किए गए गुनाहों को कोर्ट में साबित किया जाए, लेकिन यंहा तो खुद कसाब ने ही कबूलनामा देकर सजा की मांग कर दी है... अब कानून के सामने चुनौती है कसाब को उसके अंज़ाम तक पहुँचाने की, क्योकि हमारे देश के कानून की परम्परा या फिर ये कहे की मजबूरी रही है कि दोषियों को सजा देने के बाद भी उन्हें गुनाहगार की तरह ना रखकर उन्हें मेहमान की तरह रखा जाता है...


अब संसद पर हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को ही ले लीजिये... १३ दिसम्बर २००२ को संसद पर हुए हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को २००६ में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन आज भी अफज़ल गुरु सही सलामत सरकारी मेहमान बनकर सरकारी आरामगाह यानी जेल में बैठा है... संसद पर हमले को लेकर जितनी चर्चा नहीं हुई थी उससे ज्यादा चर्चा तो अफज़ल गुरु की फंसी को लेकर होती रही है... सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उसे फांसी नहीं दी गयी है...


शायद हमारे देश की यही बात है जो कसाब और अफज़ल गुरु जैसे गुनहगारों को हम पर बार बार हमला करने के लिए बढ़ावा देती है... क्योंकि वो अच्छी तरह जानते है की अगर हम पकडे भी जायेंगे तो भारत का कानून हमें ज़िंदा रखने में हमारा पूरा साथ देगा... और कानून अगर सजा सुना भी दे तो भी क्या... सज़ा के हुक्म की तामिल तो हिन्दुस्तान में होगी नहीं, तो फिर डर किस बात का जी भर कर हिन्दुस्तान की धज्जिया उडा सकते है... और ये हिन्दुस्तानी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे...

Sunday, July 19, 2009

जनसंख्या का इलैक्ट्रिक कनेक्शन...



दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र.... भारत... इस बात पर हम गर्व करे या फिर अफ़सोस... ये मुद्दा विचार करने का है... क्योंकि जिस रफ़्तार से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उससे हमारे नेतागण काफी चिंतित है.. और इस चिंता के चलते वो अपने ज्ञान के भण्डार से देश की जनता को जनसंख्या नियंत्रण करने की सीख दे रहे है...हमारे देश के स्वास्थ मंत्री आदरणीय श्री गुलाम नबी आज़ाद साहब को देश की बढती जनसंख्या के पीछे इलैक्ट्रिक कनेक्शन नज़र आ रहा है...
जी हाँ हमारे देश के स्वास्थ मंत्री का कहना है देश की बढती जनसंख्या के पीछे गाँवों में इलेक्ट्रिसिटी का ना होना है... अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इलेक्ट्रिसिटी और जनसँख्या का भला क्या रिश्ता है... लेकिन आपको बता दे कि हमारे देश के स्वास्थ मंत्री के मुताबिक जनसंख्या के बढ़ने कि वजह इलेक्ट्रिसिटी है... "गाँवों में लाइट ना होने के चलते ही लोग सेक्स को इंटरटेंमेंट कि तरह करते है, जिसके चलते बच्चे पैदा होते है, अगर हमारे गाँवों में इलेक्ट्रिसिटी होगी तो लोग रात को देर तक टीवी देखेंगे और वो फिर थक कर सो जायेंगे और सेक्स नहीं करेंगे जिससे जनसँख्या पर रोक लग पाएगी".. ये तर्क है हमारे देश के स्वास्थ मंत्री श्री गुलाम नबी आज़ाद का... ये ब्यान सुनकर लोग चौंक गए है कि आखिर इस तरह का बेवकूफाना ब्यान देश के स्वास्थ मंत्री किस तरह दे सकते है... भला इलेक्ट्रिसिटी से जनसंख्या का ये रिश्ता किस तरह से बैठाया गया है..
मंत्री महोदय ने बिना सोचे समझे ये ब्यान दे डाला है, लेकिन वो इस समस्या कि जड़ को काटने कि बजाय हवा में तीर मारते दिख रहे है... वो जनसंख्या के लिए ई फॉर एजूकेशन को जिम्मेदार ना मान कर ई फॉर इलेक्ट्रिसिटी को दोष दे रहे है...देश की जनसंख्या बढ़ने के पीछे लोगो की अज्ञानता है ना कि इलेक्ट्रिसिटी... गाँवों में आज भी लोगो को एजूकेशन की ज़रूरत है... शिक्षा की ज्योत हर अंधकार को दूर कर देती है...तो हमारे नेताओ को चाहिए कि वो बयानबाजी छोड़ समस्याओ को हल करने कि कोशिश करनी चाहिए.. मंत्री महोदय कैसे ये भूल गए है कि देश के सामने मुद्दा सेक्स नहीं है मुद्दा बढती जनसँख्या है...बढती जनसँख्या देश के सामने जितनी गंभीर है मंत्री महोदय का ये बयान उतना ही गैर जिम्मेदाराना है...
ये पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस सरकार कि तरफ से जनसँख्या को लेकर इस तरह का बयान आया है इंदिरा गाँधी के ज़माने में भी सरकार ने जनसँख्या रोकने के लिया जबरन नसबंदी करनी शुरू कर दी थी और फिर उसका खमियाजा सरकार को भुगतना पड़ा था... सरकार को इस तरह की समस्याओ पर इस तरह के बयान देने की बजाय ऐसी समस्याओं का हल निकलना चाहिए... जनता को काम चाहिए ज्ञान नहीं...

रोमिंग का मचमच...


बड़ा लम्बा वक्त गुजर गया है, कुछ लिख नहीं पाया... दरअसल मुंबई में था नहीं और ऐसी जगह गया था जहां मेरे साथ मेरी विद्युतीय कलम यानी मेरा कम्प्यूटर नहीं था... अपने पैतृक गाँव गया था इसलिए मुंबई की भाग दौड़ से दूर जाकर काफी अच्छा भी लगा...

खैर, गाँव से लौट रहा था, तब एक मजेदार किस्सा हुआ जिसे याद कर आज भी अकेले में हंसी आ जाती है, मुंबई आने के लिए पहले मुझे जयपुर पहुंचना था, सो जयपुर आने के लिए रेवाडी से ट्रेन पकड़ी...रेवाडी... हरियाणा का एक जिला॥ जो जयपुर से २०० किलो मीटर और दिल्ली से ७० किलो मीटर दूर है... खैर ट्रेन आधा घंटा देरी से थी और जब ट्रेन आई तब मैं अपनी सीट S/६ पर जाकर बैठा...लम्बी छुट्टी के बाद मुंबई जा रहा था इसलिए मूड फ्रेश था, लेकिन गाँव में रहने के बाद मुंबई जाने का दिल नहीं कर रहा था...ट्रेन को रेवाडी से चले हुए आधा घंटा बीत गया था और मैं यही सब सोच रहा था की अचानक मोबाइल की घंटी बजी... ये घंटी मेरे मोबाइल की नहीं थी बल्कि मेरे सामने वाली सीट पर बैठी महिला के मोबाइल की थी...

महिला ने फोन उठाया और बिना दुआ सलाम किए ही सीधा बोलना शुरू कर दिया... " क्या यार तुम समझते नहीं हो मैं रोमिंग में हूँ, मैं अजमेर पहुँचकर बात करुँगी... अभी दिल्ली से चली तब २० रूपये का रिचार्ज करवाया था और दो बार बात करते ही १० रुपया बैलेंस हो गया है... अभी अजमेर जा रही हूँ ॥ तब वहां पहुँचकर मैं तुमको फोन करूंगी... दरगाह पर जा रही हूँ तुम्हारे लिए भी दुआ मांग लुंगी..." और फोन कट गया... फोन काटने के बाद भी उस महिला का बोलना बंद नहीं हुआ... वो लगातार बोलती ही चली जा रही थी... दरअसल वो रोमिंग का अपना दर्द किसी से बाँटना चाह रही थी, लेकिन अंजान होने की वजह से मैं उस महिला का दर्द नहीं बाँट पाया... खैर उस महिला के दर्द को सुननेवाला एक शख्स मिल ही गया... वो फिर शुरू हो गयी... "पता है जब से मैंने मोबाईल लिया है और पहचानने वालो को पता चला है सभी नंबर मांगते है और फोन करते है... पता है मैंने मोबाइल कैसे लिया...कुछ दिन पहले मेरा जन्मदिन था उस वक्त मेरे पापा ने एक हज़ार रुपए दिए थे... बाकी दोस्तों ने भी तोहफे के रूप में पैसे ही दे दिए थे... ऐसे करके तीन हज़ार रुपए हो गए थे, लेकिन मोबाइल खरीदने के लिए मुझे एक हज़ार और चाहिए थे... यहाँ वहां से उस एक हज़ार का भी जुगाड़ हो गया और मैंने मोबाईल खरीद लिया... महिला लगातार बिना रुके बोलते ही जा रही थी कि अचानक एक आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा... आवाज़ चना मसाला बेचने वाले की थी जो चना मसाला खाने के फायदे बता बताकर बेचने की कोशिश कर रहा था... कुछ देर शांति रहने के बाद मोबाईल की घंटी फिर से बजी... इस बार भी घंटी उसी महिला के फोन की बजी थी... महिला ने फिर से फोन उठाया और फिर से उसने अपने रोमिंग में होने के दर्द का बखान करना शुरू कर दिया था... इतने में ट्रेन रुक गयी... बाहर देखा तो अलवर आ चूका था... याद आया कि अलवर कि मिठाई कलाकंद ऑफिस के साथियों और सीनियर्स के लिए लेनी थी, सो उतर कर आधा किलो कलाकंद ले आया...... ट्रेन अलवर से चल चुकी थी महिला भी अपने रोमिंग में होने के दर्द सुनाने के बाद ऊपर वाली सीट पर जाकर सो गयी थी...

कुछ देर तक बाहर भागते हुए पेड़ पोधो को देखते रहा और ना जाने कब अचानक आँख लग गयी... आंख तब खुली जब महिला की फिर से आवाज़ सुनी... इस बार महिला फोन पर बात नहीं कर रही थी, वो तो दरअसल रोमिंग में लगने वाले चार्ज के बारे में अपने बगल वाली सीट पर बैठे शख्स को बता रही थी... वो सर्विस ओपरेटरस को जी भर को कोस रही थी, कि अचानक एक महाशय ने महिला को सुझाव दे दिया कि रोमिंग में हमें इन्कोमिंग कॉल नहीं उठानी चाहिए सिर्फ आउट गोइंग कॉल करनी चाहिए... ये आवाज़ साइड वाली अपर सीट पर बैठे उस पुरुष की थी जो अब तक उस महिला की सारी बातें ध्यान से सुन रहा था... उन महाशय के इस सुझाव को सुनकर लगा कि वो भी रोमिंग के इस दर्द की पीडा को झेल चुके है...

मैं भी सोच में पड़ गया कि क्या रोमिंग का दर्द इतना ज्यादा होता है कि सहन ना हो और जब सहन ना जो तब अनायास ही गुबार फुट पड़ता है... यही सोच रहा था कि ट्रेन जयपुर जंक्शन पहुँच गयी थी... उतरने के लिए सामान उठा ही रहा था कि अचानक मोबाईल की घंटी बजी इस बार ये घटी मेरे मोबाईल की थी... जेब से निकाल कर देखा तो कॉल रिसीव करने से पहले सोचने लगा कि मैं भी तो रोमिंग में हूँ...


एक था, वो भी गया...

जिस पर विश्वास करके उसे निहारा करता था, जिसे हमेशा देखने का मन करता था..अब वो भी फ़रेबी बनते जा रहा है... वो भी अपनी बिरादरी वालो की ही तरह उन्हीं की ज़ुबान बोलने लगा है... जब भी देश और दुनिया के बारे में जानना होता था, तो उसी पर भरोसा किया करता था... लेकिन वो भी अब उस बेवफा आशिक की तरह बनते जा रहा है जो आखिरी मौके पर दगा दे जाता है.. उसकी अपनी एक पहचान थी लोग उसका नाम बड़ी इज्ज़त के साथ लिया करते थे... उसके साथ अपना नाम बोलने में फक्र महसूस होता था, लेकिन अब उसकी बदली चाल देखकर उसके नाम से अपना जोड़कर बोलने में डर लगने लगा है,कहीं कोई सुन लेगा तो बड़ी रुसवाई होगी.. यूँ तो आज भी उसके साथ बड़े बड़े नाम जुड़े हुए है, लेकिन जिसे अपना आदर्श बनाया था अब उसी के कदम आदर्शो पर चलने से डगमगा रहे है... आप सभी सोच रहे होंगे कि आखिरकार वो कौन है,जो फरेबी और बेवफा हो गया है... तो आपकी ग़लतफ़हमी दूर कर देता हूँ... वो कोई इंसान नही है, बल्कि वो एक न्यूज़ चैनल है... एनडीटीवी इंडिया का नाम तो सुना ही होगा.. मैं उसी की बात कर रहा हूँ... न्यूज़ चैनल के पैमाने पर यही एक हिन्दी न्यूज़ चैनल था जो खरा उतरता था, लेकिन कुछ दिनों से देख रहा हूँ, कि ये चैनल भी अपनी बिरादरी के बाकी भाई बंधुओ की ही तरह अपना रंग दिखाने लग गया है... कल ही एनडीटीवी पर सास बहु की साजिशों को देखा... एक पल के लिए लगा जैसे सिगनल में कोई प्रॉब्लम हो गई है, शायद किसी दुसरे चैनल का सिग्नल एनडीटीवी के साथ एक्सचेंज हो गया है, लेकिन कुछ देर तक जब वही सब चलता रहा,तो अपनी आँखों पर यकीन करते हुए अपने मन को समझाने की कोशिश में जुट गया.. एनडीटीवी इंडिया एक ऐसा न्यूज़ चैनल है, जिसमे काम करना हर जर्नलिस्ट का सपना होता है... बड़ी बात नही है मेरा भी है, लेकिन चैनल की इस बदली पॉलिसी के पीछे क्या राज़ है इसका अंदाजा नही लग पा रहा है... एक वजह जो बार बार ज़हन में आती है, वो न्यूज़ चैनल्स के बीच चल रहे टीआरपी वार की तरफ इशारा करती है, लेकिन इस वजह को मानने का दिल नही मानता है. क्योकि टीआरपी वार तो सालो से न्यूज़ चैनल्स के बीच चल रहा है, और इससे पहले एनडीटीवी कभी इस दौड़ में नही था.. तो ऐसा क्या हुआ जो अचानक एनडीटीवी को इसमें कूदने की ज़रूरत महसूस हुई... शायद मेरे दिमाग से निकली ये वजह ग़लत भी हो सकती है, लेकिन इस बात में कोई दो राय नही कि एक था, और वो भी गया..

बदनाम गलियों का दर्द...



मायानगरी मुंबई की चकाचौंध और उसकी रंगत को देखकर हर शख्स इस शहर की ओर खिंचा चला आता है, दूर से खुबसूरत लगनेवाला ये शहर अपने अन्दर ना जाने कितने दर्द छिपाए हुए है... यंहा आनेवाले हर शख्स का ये शहर अपनी बांहे खोलकर उसका स्वागत करता है, लेकिन इसी मुंबई का दिल हर पल कमाठीपुरा इलाके को देखकर रोता है, जब वहां हर पल हजारो सपने टूटकर बिखरते है॥ दिल की आह यहाँ के शोर-गुल में गुम हो जाती है..
मुंबई का कमाठीपुरा इलाका, एशिया के सबसे बड़े वेश्यावृति केन्द्र के रूप में इस इलाके की पहचान है..इस इलाके की तंग गलियों से गुजरते हुए आपको साफ़ साफ़ नज़र आएगा कि हालत क्या है...हर पल... रात हो या दिन यंहा पर लड़कियां दरवाजो, खिड़कियों और बरंडे से बाहर झांकती नज़र आती है.. इंतजार होता है अपने नए ग्राहक के आने का..उन्हें देखकर उनकी उम्र का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल हो जाता है, क्योकि छोटी लड़कियां अपने आपको बड़ा दिखाने की कोशिश करती है, और बड़ी उम्र की अपनी उम्र को लाली पाउडर के पीछे छिपती दिखती है..एशिया की सबसे बड़ी रेड लाइट डिस्टिक में सबसे कम उम्र की लड़की ७ साल तक की मिल जाती है..ज्यादातर लड़कियों को पड़ोसी मुल्क नेपाल से लाया जाता है, अपने आपको जिंदा रखने के लिए ये मशीन की तरह काम करती है और अपने शरीर को बेचकर कमाए गए पैसे अपनी मैडम को दे देती है, जो इन्हें ग्राहक को लुभाने के गुर सिखाने से लेकर.. इन्हें खिलाने पिलाने की जिम्मेदारी उठाती है..
जब ये सब वेश्यावृति से आज़ाद होती है, तब तक वक्त गुज़र चुका होता है, समाज की मुख्य धारा में इनके लिए कोई जगह नही बचती है.. इन्हें रोज मारा पीटा जाता है.. और इनके पास हालात से समझौता करने के अलावा कोई रास्ता नही बचता है.. अपने दर्द को कम करने के लिए ये नशे की गुलाम हो जाती है और जब होश में आती है तब तक वापिस लौटने के सारे रस्ते बंद हो चुके होते है... ऐसा नही है कि इनमें से कोई अपने घर नही जाना चाहता है, लेकिन लौटने पर भी इनका परिवार और समाज इन्हें कबूल नही करता है, और मज़बूरन इन्हे इन्ही बदनाम गलियों में रहना पड़ता है.. ज्यादातर लड़किया अशिक्षित होती है और अपने शरीर का सौदा करने के सिवाय इनके पास दूसरा कोई रास्ता नही होता है... हर पल मरने वाली ये लड़कियां अपनी जिंदगी में औसतन ३५ साल तक ही जिंदा रह पाती है...
मुंबई में कमाठीपुरा की ही तर्ज़ पर कई रेड लाइट एरिया है, लेकिन कमाठीपुरा को इनमें से कोई पछाड़ नही सका है...कमाठीपुरा के साथ वेश्यावृति का नाता ब्रिटिश ज़माने का है, जब हिंदुस्तान पर अंग्रेजो का राज था तब कमाठीपुरा ब्रिटिश सैनिको की आधिकारिक आरामगाह थी.. उनके जाने के बाद भी ये सिलसिला खत्म नही हुआ, आज भी पुरे हिंदुस्तान की बात करे तो हर घंटे में औसतन ४ लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में धकेला जाता है... और इसमे भी लगभग ३६ फीसदी लड़कियों की उम्र १८ साल से कम होती है...

२६/११ ने बनाया... मुख्यमंत्री


मुंबई पर २६ नवम्बर को हुए आतंकी हमले में जहाँ करीब २०० लोगो की जानें गई... वहीं इसी हमले के चलते महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया था... राज्य के गृहमंत्री के बयान ने तो आतंकी हमले की आग में जैसे घी का काम किया था॥ और उस आग को बुझाने के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को अपनी कुर्सी की बली देनी पड़ी थी... ये बाते सारी दुनिया जान चुकी है, लेकिन एक बात है जिस पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ था... और वो है... महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के इस कुर्सी तक पहुँचने का सच... कैसे और किसने बनाया उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री.....

विलासराव देशमुख और आर आर पाटिल के इस्तीफे के बाद सबसे बड़ा सवाल था, कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा... मुंबई पर आतंकी हमले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का ताज कांटो से भरा था, लेकिन कुछ दिनों की माथा-पच्ची के बाद इस सवाल का जवाब मिला अशोक चव्हाण के रूप में, लेकिन अशोक चव्हाण कैसे बने मुख्यमंत्री...? किसने बनाया उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री...? तो चलिए हम बता दे, कि अशोक चव्हाण को किसने बनाया महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री... अक्सर हम नेताओ के मुंह से सुनते है कि जनता के प्रेम ने उन्हें ये कुर्सी दिलाई है, लेकिन २६/११ के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने अशोक चव्हाण का कहना है कि "उन्हें २६/११ ने मुख्यमंत्री बनाया है... २६/११ के बाद लोगो के गुस्से के चलते विलासराव को इस्तीफा देना पड़ा और उसी के बाद उनके मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, अगर २६/११ नही हुआ होता तो शायद मैं कभी मुख्यमंत्री नही बन पाता..." लाइनस ख़ुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कही है॥ दरसल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने ये बातें मुंबई में आम जनता के बीच उस वक्त कही जब वो जनता कि शिकायते सुनने के बाद उनका जवाब दे रहे थे... अशोक चव्हाण के इस बयान से ये साफ़ ज़ाहिर होता है कि अगर मुंबई पर २६/११ को आतंकवादी हमला नही हुआ होता, तो वो कभी भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नही बन पाते...

लेकिन अपने मुख्यमंत्री बनने का राज़ खोलते वक्त वो शायद ये भूल गए कि इस तरह मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसे बयान नही देने चाहिए... मुख्यमंत्री साहब को ये तो याद है कि वो कैसे मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो शायद ये भूल गए है कि आर आर पाटिल कि कुर्सी कैसे गई थी... सिर्फ़ एक बयान ने आर आर पाटिल को अर्श से फर्श पर ला पटका था... मुंबई पर हमले के बाद उनके बयान " मुंबई जैसे बड़े शहर में ऐसा हो जाता है॥" ने उन्हें महाराष्ट्र के गृहमंत्री की कुर्सी से ज़मीन पर ला पटका था, हमारी तो मुख्यमंत्री महोदय से यही गुजारिश है, कि बयान दे तो जरा संभलकर क्योकि सियासत के इस खेल में एक बयान अगर आपको हीरो बना देता है, तो दूसरा आपको विलेन बना सकता है तो... बाबूजी राजनीति के इन गलियारों में जरा संभलकर चलना...

शिवसेना का चुनावी जायका


चुनावी मौसम आ चुका है और इसको ध्यान में रखते हुए हर राजनैतिक पार्टी अपनी अपनी जुगत में लग गई है... चुनावी वादों का पिटारा भी खुल चुका है.. ज़रूरत की सुविधाओ से लेकर नौकरी तक दिलाने के वादे किए जा रहे है... ऐसे में एक पार्टी है शिवसेना... जो हमेशा से भूमिपुत्र के मुद्दे को अपनी ढाल बनाकर चुनावी दंगल में उतरती रही है... लेकिन इस बार शिवसेना कुछ नया नुस्खा आज़मा रही है...
एक पुरानी कहावत है कि किसी के दिल तक पहुँचाना हो तो उसे जायकेदार खाना खिलाना चाहिए.. यानि कि दिल तक पहुँचने का रास्ता इन्सान के मुंह से होकर जाता है.. इस बात पर लगता है शिवसेना कुछ ज्यादा ही गंभीर होकर सोच रही है तभी तो, हमेशा से मराठी माणुस और छत्रपति शिवाजी के नाम पर अपनी लडाई लड़ने वाली शिवसेना अब शिवाजी के नाम को मुंबई के प्रसिद्ध व्यंजन वडा पाव से जोड़ने जा रही है... शिवसेना मुंबई के इस खास व्यंजन को वर्ल्ड फेमस करने की तैयारी कर रही है... शिव वडा के नाम से शिवसेना एक वडा का प्रोडक्ट लांच कर रही है जो पेप्सी और मकडोनाल्ड जैसे वर्ल्ड फेमस प्रोडक्ट्स के साथ बेचा जाएगा...
यानि कि लोगो तक अपनी पहुँच बनाने के लिए शिवसेना पहले लोगो के मुंह का जायका अपने मुताबिक करना चाह रही है, ताकि आनेवाले चुनावो में शिवसेना को अपने मन मुताबिक परिणाम मिले, अगले साल के मार्च - अप्रैल में लोकसभा के चुनाव है और सेप्टेम्बर में महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव.. ऐसे में अगर मतदाताओ का मिजाज़ शिवसेना के मुताबिक रहेगा तो चुनाव में ख़ुद ब ख़ुद बटन शिवसेना के सामने ही दबेगा.. लोगो को अपनी याद दिलाना और अपने समर्थन में लाना शिवसेना कि ज़रूरत भी है और मजबूरी भी... लेकिन शिवसेना के इस चुनावी जायके का स्वाद मतदाताओ के मिजाज़ के मुताबिक होगा या नही इस बात का पता तो चुनावो के बाद आने वाले परिणाम से ही पता चलेगा.. तब तक के लिए शिवसेना के पास पुरा वक्त है कि वो अपने चुनावी जायके से लोगो को अपनी तरफ़ मोड़ सके.....