Monday, July 20, 2009

लो मान गया कसाब... अब सुनाओ सज़ा



मुंबई पर हुए २६/११ के आतंकी हमले के एकमात्र ज़िंदा पकडे गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने आज आखिरकार जुर्म कबूल कर लिया... कसाब ने स्पेशल कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान आज अचानक २६/११ के दिन मुंबई पर किये गए हमले का गुनाह कबूल कर लिया... कसाब की इस कबूली से कोर्ट में मौजूद हर शख्स चौंक गया... अभी तक कसाब अपने आप पर लगाए गए हर आरोप को ग़लत बता रहा था, लेकिन अब कसाब ने स्पेशल कोर्ट के सामने ना सिर्फ अपना गुनाह कबूल किया बल्कि मुंबई पर हमला करने के लिए उसे तैयार करनेवाले ज़किर - उर - रहमान लखवी उर्फ़ चाचा जान की भूमिका से भी पर्दा उठा दिया...


कसाब के इस कबूलनामे में उसने २६/११ की सुनवाई रोककर उसे सजा सुनाने की बात कही॥लेकिन क्या हमारा कानून इस बात को मानेगा... ये सवाल है..??? अभी तक पुलिस और सरकारी वकील इस जुगत में जुटे हुए थे कि कसाब और उसके साथियो के द्वारा किए गए गुनाहों को कोर्ट में साबित किया जाए, लेकिन यंहा तो खुद कसाब ने ही कबूलनामा देकर सजा की मांग कर दी है... अब कानून के सामने चुनौती है कसाब को उसके अंज़ाम तक पहुँचाने की, क्योकि हमारे देश के कानून की परम्परा या फिर ये कहे की मजबूरी रही है कि दोषियों को सजा देने के बाद भी उन्हें गुनाहगार की तरह ना रखकर उन्हें मेहमान की तरह रखा जाता है...


अब संसद पर हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को ही ले लीजिये... १३ दिसम्बर २००२ को संसद पर हुए हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को २००६ में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन आज भी अफज़ल गुरु सही सलामत सरकारी मेहमान बनकर सरकारी आरामगाह यानी जेल में बैठा है... संसद पर हमले को लेकर जितनी चर्चा नहीं हुई थी उससे ज्यादा चर्चा तो अफज़ल गुरु की फंसी को लेकर होती रही है... सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उसे फांसी नहीं दी गयी है...


शायद हमारे देश की यही बात है जो कसाब और अफज़ल गुरु जैसे गुनहगारों को हम पर बार बार हमला करने के लिए बढ़ावा देती है... क्योंकि वो अच्छी तरह जानते है की अगर हम पकडे भी जायेंगे तो भारत का कानून हमें ज़िंदा रखने में हमारा पूरा साथ देगा... और कानून अगर सजा सुना भी दे तो भी क्या... सज़ा के हुक्म की तामिल तो हिन्दुस्तान में होगी नहीं, तो फिर डर किस बात का जी भर कर हिन्दुस्तान की धज्जिया उडा सकते है... और ये हिन्दुस्तानी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे...

2 comments:

  1. देखते हैं...सोचेंगे...बात करेंगे...विमर्श चलेगा...वोट लिए जायेंगे..दूसरों को नीचा दिखायेंगे...फिर सुना देंगे कभी न कभी एक ठो फैसला ..क्या जल्दी है...कई पहले के भी हैं...अफजल बैठा ही है..पहले उसका देखें कि इनका..वो भी चर्चा का विषय है..दोनों ही मुसलमान हैं..अल्पसंख्यक हैं..अतः प्रियोरिटि में हैं देरी करने की..और ये तो झूट बोल रहा है..इसने किया ही नहीं...इसके सबूत भी सरकार के पास!! फिर क्यूँ जल्दबाजी??? पता नहीं..इस पर कहीं अमरीका का दबाव तो नहीं..हिलरी भी आई हुई है..उसी ने दबाव डाला होगा..पहले उसकी जाँच होगी..फिर कुछ फैसला लेंगे नहीं...सोचेंगे. :)

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  2. is baare mein aap hamari raai jaanenge to hame maarne ko daudenge! ham chaahte hain wo abhi zinda rahe..jab tak 26/11 ke asli masterminds ko saza na mil jaaye..

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