
मायानगरी मुंबई की चकाचौंध और उसकी रंगत को देखकर हर शख्स इस शहर की ओर खिंचा चला आता है, दूर से खुबसूरत लगनेवाला ये शहर अपने अन्दर ना जाने कितने दर्द छिपाए हुए है... यंहा आनेवाले हर शख्स का ये शहर अपनी बांहे खोलकर उसका स्वागत करता है, लेकिन इसी मुंबई का दिल हर पल कमाठीपुरा इलाके को देखकर रोता है, जब वहां हर पल हजारो सपने टूटकर बिखरते है॥ दिल की आह यहाँ के शोर-गुल में गुम हो जाती है..
मुंबई का कमाठीपुरा इलाका, एशिया के सबसे बड़े वेश्यावृति केन्द्र के रूप में इस इलाके की पहचान है..इस इलाके की तंग गलियों से गुजरते हुए आपको साफ़ साफ़ नज़र आएगा कि हालत क्या है...हर पल... रात हो या दिन यंहा पर लड़कियां दरवाजो, खिड़कियों और बरंडे से बाहर झांकती नज़र आती है.. इंतजार होता है अपने नए ग्राहक के आने का..उन्हें देखकर उनकी उम्र का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल हो जाता है, क्योकि छोटी लड़कियां अपने आपको बड़ा दिखाने की कोशिश करती है, और बड़ी उम्र की अपनी उम्र को लाली पाउडर के पीछे छिपती दिखती है..एशिया की सबसे बड़ी रेड लाइट डिस्टिक में सबसे कम उम्र की लड़की ७ साल तक की मिल जाती है..ज्यादातर लड़कियों को पड़ोसी मुल्क नेपाल से लाया जाता है, अपने आपको जिंदा रखने के लिए ये मशीन की तरह काम करती है और अपने शरीर को बेचकर कमाए गए पैसे अपनी मैडम को दे देती है, जो इन्हें ग्राहक को लुभाने के गुर सिखाने से लेकर.. इन्हें खिलाने पिलाने की जिम्मेदारी उठाती है..
जब ये सब वेश्यावृति से आज़ाद होती है, तब तक वक्त गुज़र चुका होता है, समाज की मुख्य धारा में इनके लिए कोई जगह नही बचती है.. इन्हें रोज मारा पीटा जाता है.. और इनके पास हालात से समझौता करने के अलावा कोई रास्ता नही बचता है.. अपने दर्द को कम करने के लिए ये नशे की गुलाम हो जाती है और जब होश में आती है तब तक वापिस लौटने के सारे रस्ते बंद हो चुके होते है... ऐसा नही है कि इनमें से कोई अपने घर नही जाना चाहता है, लेकिन लौटने पर भी इनका परिवार और समाज इन्हें कबूल नही करता है, और मज़बूरन इन्हे इन्ही बदनाम गलियों में रहना पड़ता है.. ज्यादातर लड़किया अशिक्षित होती है और अपने शरीर का सौदा करने के सिवाय इनके पास दूसरा कोई रास्ता नही होता है... हर पल मरने वाली ये लड़कियां अपनी जिंदगी में औसतन ३५ साल तक ही जिंदा रह पाती है...
मुंबई में कमाठीपुरा की ही तर्ज़ पर कई रेड लाइट एरिया है, लेकिन कमाठीपुरा को इनमें से कोई पछाड़ नही सका है...कमाठीपुरा के साथ वेश्यावृति का नाता ब्रिटिश ज़माने का है, जब हिंदुस्तान पर अंग्रेजो का राज था तब कमाठीपुरा ब्रिटिश सैनिको की आधिकारिक आरामगाह थी.. उनके जाने के बाद भी ये सिलसिला खत्म नही हुआ, आज भी पुरे हिंदुस्तान की बात करे तो हर घंटे में औसतन ४ लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में धकेला जाता है... और इसमे भी लगभग ३६ फीसदी लड़कियों की उम्र १८ साल से कम होती है...
साहिर लुधिअनावी की इन पंक्तियों में जिन गलियों का दर्द सिमटा है, उनसे हम सब वाकिफ हैं. इन्हीं पंक्तियों को जब रफी साहब ने अपनी आवाज़ दी फ़िल्म "प्यासा" के लिए (जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं...) तो ये नग्मा साहित्यप्रेमियों के दायरों से निकल कर आम आदमी की रूह में उतर गया. कोई मर्मस्पर्शी कविता हो या कोई दिल को छू लेने वाला गीत, विचारों को उद्देलित करने वाली कोई कलाकृति हो या फ़िर एक सार्थक सिनेमा, कला का उदेश्य हमेशा ही समाज को आईना दिखाना रहा है.
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